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आजकल बैंको ने à¤à¤• नयी परमà¥à¤ªà¤°à¤¾ शà¥à¤°à¥‚ की है। यदि किसी छोटे से लोन में किसी à¤à¥€ कारण डीफॉलà¥à¤Ÿ है तो उकà¥à¤¤ करà¥à¤œà¤¦à¤¾à¤° / गारंटर की फोटो तà¥à¤°à¤‚त अखबार में छाप देते है जबकि छोटे à¤à¤µà¤‚ मधà¥à¤¯à¤® वरà¥à¤— में वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¤¾à¤¯à¥€, बहà¥à¤¤ से कारणों जैसे, सरकारी नीतियों या सूखा/बाढ़ या दंगे-फसाद (जैसा जाट आरकà¥à¤·à¤£ के दौरान हरियाणा में हà¥à¤†) अपना ऋण नहीं चà¥à¤•à¤¾ पाते। à¤à¤¸à¥‡ लोगों को à¤à¤• संघरà¥à¤· तो जीवन यापन के लिठकरना होता है और दूसरी तरफ बैंक उकà¥à¤¤ करà¥à¤œà¤¦à¤¾à¤° की फोटो छापकर उसे समाज से à¤à¥€ बहिषà¥à¤•à¥ƒà¤¤ करा देते हैं। à¤à¤¸à¤¾ निराश वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ अब कà¥à¤¯à¤¾ करे? कà¥à¤¯à¤¾ किसी à¤à¥€ बैंक ने विजय मालà¥à¤¯à¤¾ या किसी अनà¥à¤¯ बड़े à¤à¤µà¤‚ इजà¥à¤œà¤¤à¤¦à¤¾à¤° डीफॉलà¥à¤Ÿà¤° की फोटो छापी है? जरा सोचिठ- कà¥à¤¯à¤¾ यह à¤à¤• जरà¥à¤œà¤° बैंकिंग वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ नहीं है।